Author(s): ड़ी. एन. सूर्यवंशी, लक्ष्मी लेकाम

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Address: ड़ी. एन. सूर्यवंशी, श्रीमती लक्ष्मी लेकाम
राजनीति शास्त्र, भा.प्र.दे.शास. स्नातकोŸार महाविद्यालय कांकेर छ.ग.।
*Corresponding Author

Published In:   Volume - 5,      Issue - 3,     Year - 2014


ABSTRACT:
भारत जैसे देश में जहां 80ः प्रतिशत जनसंख्या गांवों में बसती है, वहां पंचायती राज के नाम से प्रसिद्ध ग्रामीण स्थानीय शासन का महत्व स्वतः सिद्ध है। पंचायत भारत के प्राचीनतम राजनीतिक संख्याओं में से एक मानी जाती है। 2 अक्टूबर 1952 की सामुदायिक विकास कार्यक्रम के शुभारंभ के साथ ही इस योजना का प्रारंभ माना जाता है। 2 अक्टूबर का दिन गांधीजी के जन्म तिथि होने के कारण चुना गया है। गाधीजी ग्रामों के हितों को सर्वाधिक महत्व प्रदान करते थे। वे ग्रामीण जीवन का पुनर्निर्माण ग्राम पंचायतों की पुनः स्थापना से ही संभव मानते थे। भारत के संविधान निर्माता भी इस तथ्य से भली भांति परिचित थे, अतः हमारी स्वाधीनता को साकार करने और उसे स्थायी बनाने के लिए ग्रामीण शासन अवस्था की ओर पर्याप्त ध्यान दिया गया। हमारे संविधान में यह निर्देश दिया गया है कि राज्य ग्राम पंचायतों के निर्माण के लिए कदम उठाएगा और उन्हंे इतनी शक्ति और अधिकार प्रदान करेगा कि वे (ग्राम पंचायतें) स्वशासन की इकाई के रूप मंे कार्य कर सकें।


Cite this article:
ड़ी. एन. सूर्यवंशी, लक्ष्मी लेकाम . पंचायती राज व्यवस्था-आवश्यकता, महत्व, समस्या व सुझाव . Research J. Humanities and Social Sciences. 5(3): July-September, 2014, 286-289 .

Cite(Electronic):
ड़ी. एन. सूर्यवंशी, लक्ष्मी लेकाम . पंचायती राज व्यवस्था-आवश्यकता, महत्व, समस्या व सुझाव . Research J. Humanities and Social Sciences. 5(3): July-September, 2014, 286-289 .   Available on: https://rjhssonline.com/AbstractView.aspx?PID=2014-5-3-7


संदर्भ ग्रन्थ सूची
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DOI: 10.5958/2321-5828 


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