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मधुलता बारा
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मधुलता बारा
व्याख्याता हिंदी साहित्य एवं भाषा-अध्ययनशाला पं. रविशंकर शुक्ल वि.वि., रायपुर
*Corresponding Author:
Published In:
Volume - 2,
Issue - 4,
Year - 2011
ABSTRACT:
वर्तमान समाज में अर्थ की महत्वपूर्ण भूमिका है। आज अर्थ के माध्यम से रिश्ते बनने लगे हैं। व्यक्ति किसी के साथ रिश्ता तभी जोड़ता है, जब सामने वाला व्यक्ति उसके बराबर का हो। यदि वह बराबरी का न हो तो रिश्ता क्या उससे बात और दुआ-सलाम तक नहीं होती। इसी से स्पष्ट होता है कि समाज में रहने वाले हर एक इंसान के लिए अर्थ का होना कितना आवश्यक है। ज्ञानचन्द्र गुप्त कहते हैं- ‘‘आज के जीवन में परिव्याप्त जटिलताएँ अर्थमूला हैं। व्यक्ति अपने चतुर्दिक आर्थिक दबावों, अनुभवों एवं विविध संगति-विसंगतियों के मध्य से यातनापूर्ण यात्रा तय कर रहा है। देश की अर्थव्यवस्था, संक्रमणकाल के विविध संदर्भें से गुजर कर राष्ट्रीय विकास की ओर गतिशील हैं आज देश अपने पुनः निर्माण में व्यस्त है। जब तक देश की गरीबी जनता को पेट भर भोजन, तन ढँकने को वस्त्र और रहने को मकान नहीं मिलता, तब तक उसके जीवन में आशा-उल्लास का प्रश्न ही नहीं उठता।’’1 इससे स्पष्ट होता है कि आर्थिक जटिलताओं के कारण व्यक्ति का जीवन कितना त्रासद, घुटनशील एवं पीड़ादायक है। आम आदमी के लिए दो वक्त की रोटी न जुटा पाना, रहने के लिए मकान का न होना एवं तन ढँकने के लिए कपड़ों का न होना कितनी बड़ी विडंबना है।
Cite this article:
मधुलता बारा. समकालीन हिंदी कविता में आर्थिक पीड़ा से जूझता आम आदमी. Research J. Humanities and Social Sciences. 2(4): Oct. - Dec., 2011, 174-177.
Cite(Electronic):
मधुलता बारा. समकालीन हिंदी कविता में आर्थिक पीड़ा से जूझता आम आदमी. Research J. Humanities and Social Sciences. 2(4): Oct. - Dec., 2011, 174-177. Available on: https://rjhssonline.com/AbstractView.aspx?PID=2011-2-4-4
संदर्भ-सूची
1. ज्ञानचन्द्र गुप्त: स्वातंत्र्योत्तर हिंदी उपन्यास और ग्राम-चेतना; 140.
2. जगदीश नारायण श्रीवास्तव: समकालीन कविता पर एक बहस; 41.
3. मृदुल जोशी: समकालीन हिंदी कविता में आम आदमी; 124-125.
4. नगेन्द्र: हिंदी साहित्य का इतिहास; 642.
5. मृदुला जोशी: समकालीन हिंदी कविता में आम आदमी से उद्धृत; 126.
6. कल सुनना मुझे: काव्य संग्रहांतर्गत प्रस्तावना के रूप में लिखा आलेख; ‘ग’.
7. मृदुला जोशी: समकालीन हिंदी कविता में आम आदमी से उद्धृत; 128.