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शैलप्रभा कोष्टा
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शैलप्रभा कोष्टा
सहायक प्राध्यापक (अर्थशास्त्र)ए अर्थशास्त्र विभाग हितकारिणी महिला महाण्ए जबलपुर
*Corresponding Author:
Published In:
Volume - 2,
Issue - 3,
Year - 2011
ABSTRACT:
जनजाति का अर्थ आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र ऐसा जन समूह जो एक भाषा बोलता है तथा बाह्य आक्रमण से सुरक्षा करने के लिए संगठित होता है। वर्तमान आधुनिक विश्व मंे आज भी महाद्वीपों के दुर्गम क्षेत्रों में ये मानव समूह हजारों वर्षो से शेष विश्व की सभ्यता से अलग पहचान बनाए हुए है जिन्हें आधुनिक समाज की अर्थदृष्टि अनुत्पादक मानती है। गिलिन के अनुसार ‘‘जनजाति किसी भी ऐसे सामान्य भू-भाग पर निवास करती हो, सामान्य भाषा बोलते एवं सामान्य संस्कृति का व्यवहार करते है।’’ अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने किसी भी देश के मूल निवासियांे को आदिवासी शब्द से सम्बोधित किया है।’’ भारत में भी समय-समय पर ऐसे समुदायों को जो आधुनिकता से दूर अपनी पुरानी मान्यताओं के साथ जंगलों में जीवन व्यतीत कर रहे है आदिवासी कहा गया है मेरे मतानुसार’’ आदिवासी शब्द के नाम से हमें एक ऐसी जनजाति का बोध होता है जो सामाजिक, आर्थिक, मानसिक और राजनैतिक दृष्टिकोण से अत्यन्त पिछड़ी हुई है यों कहिए कि इनमें चेतना का सर्वथा अभाव है। एक ऐसा समुदाय जो वर्तमान विकास से दूर ऐसे स्थानेां पर निवास करते है जो उनके जीवन का आधार है वे समूहों में अपने सामाजिक नियमों का निर्वाह करते हुए अपने आश्रयदाता (वन) के साथ प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े है परन्तु समय एवं परिस्थिति के अनुसार विकास की धारा से मिलना चाहते हैं।
Cite this article:
शैलप्रभा कोष्टा. जनजातियों का व्यवसाय, उपभोग एंव जीवन स्तर (मण्डला जिले के संदर्भ में). Research J. Humanities and Social Sciences. 2(3): July-Sept., 2011, 142-144.
Cite(Electronic):
शैलप्रभा कोष्टा. जनजातियों का व्यवसाय, उपभोग एंव जीवन स्तर (मण्डला जिले के संदर्भ में). Research J. Humanities and Social Sciences. 2(3): July-Sept., 2011, 142-144. Available on: https://rjhssonline.com/AbstractView.aspx?PID=2011-2-3-14
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