ABSTRACT:
आज से लगभग 6 सौ वर्ष पूर्व भारत में एक ऐसी ओजस्वी प्रतिभा संपन्न विभूति का आविर्भाव हुुआ जिसने हाथ में मशाल लेकर जर्जरित विश्रृंखलित रूढ़ियों से ग्रस्त मृतप्राय समाज को ज्ञान का आलोक प्रदान किया । निजी जीवन की परवाह न करते हुए स्वयं को नैतिक आदर्श और सामाजिक न्याय की स्थापना हेतु पूर्णतः समर्पित कर दिया । ऐसी बहुआयामी प्रतिभा के धनी कबीर दास के व्यक्तित्व एवं उनकी वाणियों में अभिव्यक्त उनकी विचारधारा के आधार पर अधिकांशतः आलोचकों ने उन्हें संत, क्रांतिकारी, समाज सुधारक, युग चेता, युग प्रवर्तक, विद्रोही, अक्खड़, उदण्ड स्वभाव से युक्त, आत्मज्ञानी आदि विशेषणों से विभूषित किया है । ये सभी विशेषण सार्थक एवं साभिप्राय हैं इनके साथ - साथ कबीर दास का एक ‘कर्मयोगी‘ का रूप भी है जिसकी ओर सामान्यतः कबीर के अध्येताओं एवं आलोचकों का ध्यान कम ही जाता है या उन्होंने गंभीरता से इस पर विचार, मनन ही नहीं किया हैं ।
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बृजेन्द्र पाण्डेय. कर्मयोगी संत कबीर के जीवन मूल्य. Research J. Humanities and Social Sciences. 6(3): July- September, 2015, 169-174.
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बृजेन्द्र पाण्डेय. कर्मयोगी संत कबीर के जीवन मूल्य. Research J. Humanities and Social Sciences. 6(3): July- September, 2015, 169-174. Available on: https://rjhssonline.com/AbstractView.aspx?PID=2015-6-3-1
संदर्भ गृन्थ सूची
1) कबीर की विचारधारा - डाॅ गोविन्द त्रिगुणायत पृ 318
2) शोध प्रबंध- संत औश्र सूफी साहित्य मे नैतिक तत्व श्रीमती सविता श्रीवास्तव ।
3) कबीर का सामाजिक दर्शन -पृष्ठ-117 डाॅ. प्रहलाद भौर्य
4) कबीर गंृशावली - पृष्ठ- 104
5) युग दृष्ठा कवि कबीर, पृ. 40, अवधेश प्रसार सिंह केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा ।
6) सदगुरू कबीर साने प्योनिधि पृ. 188 - आचार्य गृधमुनि नाम साहब ।
7) कबीर और कबीर पंथ, पृ. 153 डाॅ केदार नाथ द्धिवेदी ।
8) कबीर पंथ का उद्भव एंव प्रसार पृ. 62- डाॅ राजेन्द्र प्रसाद ।