ABSTRACT:
एक ओर बच्चों को महंगे से महंगे व प्रतिष्ठित, सभी सुविधाओं से भरपूर स्कूलों में भेजने की होड़ है, तो दूसरी ओर ऊंची आय व नौकरी का मार्ग प्रशस्त करने वाली कोचिंग क्लासों में भीड़ लगी हुई है। इन सब सरगर्मियों में नैतिक मूल्यों की बात कहीं दब-सी गई है।यदि कोई भूले-बिसरे नैतिक मूल्यों की शिक्षा की बात कर भी देता है, तो ऐसा रिसपांस मिलता है जैसे कोई बहुत पुरानी सी आउटडेटिड बात कह दी हो या फिर इसे धार्मिक शिक्षा के साथ गड़मड़ कर दिया जाता है। पर यहां हमारा तात्पर्य दूर-दूर तक किसी एक धर्म की शिक्षा से नहीं है। कुछ ऐसे शाश्वत नैतिक मूल्य हैं जो सभी धर्मों को मान्य होते हैं और जो कभी पुराने नहीं पड़ते हैं, सदा किसी स्वस्थ व ईमानदार समाज के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। क्या ऐसे नैतिक मूल्यों को शिक्षा में महत्वपूर्ण स्थान नहीं मिलना चाहिए? उदाहरण के लिए इन चंद नैतिक मूल्यों पर विचार करें। ईमानदारी व मेहनत की कमाई ही सबसे श्रेष्ठ है, बेईमानी व भ्रष्टाचार से सदा दूर रहना चाहिए। धर्म, जाति, नस्ल, रंग आदि के आधार पर कभी भेदभाव नहीं करना चाहिए व सब मनुष्यों को एक समान मानना चाहिए। अपने से कमजोर व निर्धन व्यक्तियों के प्रति सहायता व सहयोग की भावना रखनी चाहिए। सभी पशु-पक्षियों, जीव-जंतुओं के प्रति करूणा की भावना मनुष्य में होनी चाहिए। अन्याय से किसी का हक नहीं छीनना चाहिए। अपने हितों की रक्षा के साथ दूसरों के हितों, अधिकारों व दृष्टिकोण का भी ख्याल रखना चाहिए। दुनिया में शांति, अहिंसा, सहनशीलता, भाई चारे का संदेश फैलना चाहिए। पेड़-पौधों, हरियाली, पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए है।1
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कुबेर सिंह गुरूपंच, नागेश्वर प्रसाद साहू. मूल्य शिक्षा. Research J. Humanities and Social Sciences. 5(3): July-September, 2014, 347-349
Cite(Electronic):
कुबेर सिंह गुरूपंच, नागेश्वर प्रसाद साहू. मूल्य शिक्षा. Research J. Humanities and Social Sciences. 5(3): July-September, 2014, 347-349 Available on: https://rjhssonline.com/AbstractView.aspx?PID=2014-5-3-17