श्रीमद्भागवत में संस्कारों की विवेचना
भानुप्रकाश खरे
शोधार्थी (संस्कृत), शोध अध्ययन केन्द्र, शास. स्वशा.स्नातकोत्तर महाविद्यालय, दतिया (म.प्र.)
संस्कार:-
श्रीमद्भागवत में संस्कारों का विस्तृत वर्णन किया गया है। संस्कार मनुष्य का चहुँमुखी विकास करते हैं। संस्कार का शाब्दिक अर्थ है सुधारने की प्रक्रिया। भागवतकालीन मानव का जीवन संस्कार सम्पन्न होता था। संस्कार की प्रक्रियाओं में देवताओं के समक्ष शुद्ध और उन्नतोन्मुखी भावी जीवन की प्रतिज्ञा की जाती है। संस्कारों के माध्यम से मनुष्य अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों का निर्वाह करना भी सीखता है। गर्भाधान से अन्त्येष्टि संस्कार जिनके होते हैं, वही द्विज कहलाते हैं।1 श्रीमद्भागवत में निम्न संस्कारों का उल्लेख किया गया है-
1. गर्भाधान:- पत्नी के गर्भ में वीर्य का प्रतिष्ठित होना गर्भाधान है। संतान की कामना से ही संभोग करके माता सन्तान की लौकिक व पारलौकिक अभ्युदय की प्रार्थना करती थी। पिता भी सुसंतान की कामना करता था।2
2. पुंसवन:- गर्भ के प्रतिष्ठित हो जाने पर गुणवान पुत्र की प्राप्ति की कामना के लिये यह संस्कार किया जाता था। पुंसवन व्रत की विधि का सविस्तार वर्णन षष्ठ स्कन्ध के 19वंे अध्याय में प्राप्त होता है।
3. जातकर्म:- पुत्र उत्पन्न होने के बाद जातकर्म संस्कार किया जाता था। यह उल्लेख प्राप्त होता है कि उस समय ब्राह्मणों के द्वारा स्वस्तिवाचन कराया जाता था। देव एवं पितृ पूजा की जाती थी। ब्राह्मणों को प्रचुर मात्रा में गाय आदि का दान दिया जाता था।3 जातकर्म के अवसर पर प्रजातीर्थ में गाय आदि का दान दिया जाता था।4 नाल कटने से पूर्व के समय को प्रजातीर्थ कहा गया है। इस समय जो दान दिया जाता है, उसे अक्षय माना गया है।
4. औत्थानिक:- कृष्ण के औत्थानिक संस्कार का भी उल्लेख प्राप्त होता है।5 यह संस्कार नामकरण से पूर्व किया जाता था किन्तु भागवत पुराण में इसकी संस्कार विधि का उल्लेख नहीं प्राप्त होता है। केवल ब्राह्मण आदि के स्वस्तिवाचन व अनेक लोगों के निमन्त्रित होने का उल्लेख प्राप्त होता है। इस दिन सूतक समाप्त हो जाता है और बच्चे की माता पवित्र कर्मों को करने योग्य मानी जाने लगती है।6
5. नामकरण:- जिस दिन बालक का नाम रखा जाता था उसी दिन यह संस्कार सम्पन्न होता था। नन्दबाबा ने श्री गर्गाचार्य जी से श्रीकृष्ण बलराम का नामकरण संस्कार करवाया।7 ज्योतिष के आधार पर बालक के भविष्य के विषय में कथन किया जाता था।8 ब्रह्मा जी ने कर्दम और देवहूति के पुत्र कपिल का नामकरण संस्कार किया।9
6. उपनयन संस्कार:- श्रीमद्भागवत में इस संस्कार का नामोल्लेख मात्र है।10 गुरु के समीप विद्याध्ययन के लिये बालक जब ले जाया जाता था तब उपनयन संस्कार किया जाता था। इसके पश्चात ब्रह्मचर्याश्रम का प्रारम्भ होता था।
7. यज्ञोपवीत संस्कार:- शिक्षा प्राप्त करने से पूर्व विद्याध्ययन के प्रारम्भ से पहले कुल पुरोहित द्वारा द्विजाति समुचित संस्कार किया जाता था। कृष्ण व बलराम का यज्ञोपवीत संस्कार गर्गाचार्य ने किया।
इसके बाद वे उज्जयिनी पढ़ने के लिए गये।11 श्रीमद्भागवत में कलियुग के ब्राह्मणों का यज्ञोपवीत एक चिह्न मात्र बताया गया है।12
8. समावर्तन संस्कार:- इस संस्कार का भी नामोल्लेख मात्र प्राप्त होता हैं। यह संस्कार विवाह से पूर्व किया जाता था।13 समावर्तन का शाब्दिक अर्थ है लौटना। ब्रह्मचर्य की समाप्ति पर यह संस्कार किया जाता था।
9. विवाह:- विवाह एक पवित्र संस्कार है। इसमें पति एवं पत्नी एकाकार होकर गृहस्थाश्रम में प्रवेश कर सृष्टि चक्र में सहायक होते हैं। इस संस्कार का भी नामोल्लेख मात्र प्राप्त होता है।
10. अन्त्येष्टि संस्कार:- यह मनुष्य का अन्तिम संस्कार होता था जो उसकी मृत्यु के बाद मृतक के सम्बंधियों द्वारा मृतक की आत्मा शान्ति हेतु किया जाता था। अन्त्येष्टि के अवसर पर देवों से प्रार्थना की जाती है कि मृतक को स्वर्ग की प्राप्ति हो।14
श्रीमद्भागवत में श्रीराम कथा के प्रसंग में उल्लेख मिलता है कि श्रीराम ने जटायु का दाह संस्कार किया।15 लंका में विभीषण ने अपने स्वजन सम्बंधियों को पितृयज्ञ की विधि से शास्त्र के अनुसार अन्त्येष्टि कर्म किया।16 भगवान् ने प्रह्लाद से कहा यद्यपि मेरे अंगों का स्पर्श होने से तुम्हारे पिता पूर्ण रूप से पवित्र हो गये हैं, तथापि तुम उनकी अन्त्येष्टि क्रिया करो। इससे इन्हें उत्तम लोकों की प्राप्ति होगी।17 भगवान् की आज्ञानुसार प्रह्लाद नेे अपने पिता की अन्त्येष्टि क्रिया की।18 काशी नरेश की मृत्यु पर उसके पुत्र सुदक्षिण ने उसका अन्त्येष्टि संस्कार किया।19
अंत में कहा जा सकता है कि श्रीमद्भागवत में संस्कारों का विशेष महत्व है।
संदर्भ:-
1. श्रीमद्भागवत - 7/15/52
2. वही - 3/14/11
3. वही - 10/5/1-3, 6/14/33
4. वही - 1/12/14
5. वही - 10/07/8
6. धर्मशास्त्र का इतिहास (प्रथम भाग) पृ.-195
7. श्रीमद्भागवत - 10/8/11
8. वही - 10/8/12
9. वही - 3/24/19
10. वही - 5/9/4
11. वही - 10/45/26-31
12. वही - 12/2/3
13. वही - 5/9/4
14. ऋग्वेद - 10/14-19
15. श्रीमद्भागवत - 9/10/12
16. वही - 9/10/29
17. वही - 7/10/22
18. वही - 7/10/24
Received on 11.07.2014
Revised on 24.08.2014
Accepted on 29.08.2014
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Research J. Humanities and Social Sciences. 5(2): April-June, 2014, 239-240