जनजातिय महिलाओं की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन एवं नषा प्रवृति का अध्ययन
प्रो. आर के. पाण्डेय1ए डाॅ. (श्रीमती) व्ही.सेनगुप्ता2
1सहा. प्रध्यापक (इतिहास)ए शा.टी.सी.एल.स्नातकोत्तर महा.ए जाँजगीर (छ.ग.)
2सहा. प्रध्यापक (समाजशास्त्र)ए सी.एल.स्नातकोत्तर महा.ए जाँजगीर (छ.ग.)
संक्षेपिका
बनवासी जीवन में श्री राम ने समाज के उच्च और निम्न वर्गो से केवल घनिष्ठ संबंध ही स्थापित नहीं किया, वरन देश में ब्याप्त सामाजिक रूढ़ियों और मान्यताओं के विपरीत उत्साह और साहस युक्त नये परिवर्तन लाने की भी सफल चेष्टा की। अपने प्रति सच्चा अनुराग रखने वाली बूढ़ी भीलनी शबरी के आश्रम में जाकर उसके जूठे बेर खाना तथा अपनी विचारधारा से अवगत कराना राम का उपेक्षित वर्ग के प्रति ठोस स्नेह था। और पुरानी रूढ़ियों पर करारी चोट थीं।
अध्ययन की आवश्यकता एवं उद्ेश्य-
1. जनजाति महिलाओं में मद्यपान जागरूकता के कारणों का पता करना।
2. मद्यपान सेवन से उनके परिवार के सदस्यों की प्रतिक्रिया।
3. विकास कार्यक्रमों के प्रति ज्ञान तथा व्यवहारों का विश्लेषण करना।
4. जनजाति महिलाओं के विकास के सकारात्मक प्रभावों का मूल्यांकन करना।
5. इस व्यसन से होने वाले दुष्परिणामों का अध्ययन करना।
नशा प्रवृत्ति-(जनजातिय महिलाओं में)
वर्तमान परिपेक्ष में नशा कई कारणों से की जाती है। जैसे फैशन बतौर नशे की आदत के कारण बीमारी के कारण, निर्धनता, बेरोजगारी आदि कारणों से मद्यपान की जाती है। भारत वर्ष के निर्धन लोगों में मद्यपान उनकी नशा को और भी गिराए रखता है। मद्यपान सदैव व्यक्तिगत विघटन नहीं करता, परन्तु फिर भी मद्यपान व्यक्तिगत का एक बड़ा कारण माना जाता है। व्यक्ति मद्यपान से अनियंत्रित हो जाता है इस कारण मद्यपान सामाजिक विद्यटन भी उत्पन्न करता है। मादक पेयो शराब, ताड़ी, मदिरा आदि का सेवन ही मद्यपान कहलाता है। जनजातीय समाज में भी मद्यपान कोई बुराई नही बल्कि संस्कृति माना जाता है। जनजातीय जीवन मुख्यतः मद्यपान के माध्यम से साधक रहा है। जो उसके सामान्य जनजीवन का युगो-युगो से चले आ रहे जीवन पद्धति का मूल रूप है। अपनी इस आवश्यकता की पूर्ति हेतु बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने को भी तत्पर रहता है। जहाॅ महुआ के वृक्ष नही है ऐसे स्थानों पर आदिवासी सल्फी, ताड़ी आदि वृक्षों से मद्य प्राप्त करता है।
जनजातीय समाज में निम्न मद्यपान का प्रचलन है सल्फी, ताड़ी, लौदा, महुआ, देशी शराब तंबाखू, भांग, गांजा, गुड़ाखू, आदि जिसमें से भांग देशी शराब, गांजा का सेवन मात्र पुरूष वर्ग करते है। अधिकतर महिलाएॅ ीाी मद्य का सेवन मात्र तीज त्योहारों या जिस दिन उन्हें मजदूरी प्राप्त होती है उस दिन करती है, कुछ महिलाएॅ ऐसी है जो इसकी आदि हो चुकी है।
अपने पति या परिवार के साथ मिलकर मद्य का सेवन करना समाज की परंपरा में शामिल है, वे महिलाएॅ लौदा व महुए की शराब का निर्माण अपने घर पर ही करती है।
लांदाए चाॅवल को भिगाकर पीसा जाता है, और भाप में पकाकर पानी में घोल कर बना कर दो से तीन दिन तक सड़ने के लिए रखते है। इसके बाद इसमें नशा उत्पन्न होता है। इसी प्रकार महुए को भी भिगाकर हंडी में पानी रखकर उसके ऊपर महुए की हंडी को रखकर पकाया जाता है। भाप द्वारा पक कर दूसरे बर्तन में शराब जमा की जाती है। इस प्रकार से महुए की शराब का निर्माण किया जाता है।
शराब के बिना उनका कोई कार्य या संस्कार नहीं होता है उदाहरण के लिए विवाह, जन्म आदि संस्कारों में यहाॅ तक कि मृत्यु संस्कारों में भी जनजातीय महिला एवं पुरूष मिलकर मादक द्रव्यों का सेवन करते है, जनजातीय महिलाएॅ स्वयं ही महुआ तथा अन्य पदार्थो से मद्य का निर्माण कर सेवन करती है। किन्तु नगरीय क्षेत्रों के आसपास निवास करने वाली जनजातियाॅ बाजार से शराब एवं अन्य मद्यपान खरीदकर उपयोग में लाती है।
आधुनिक वातावरण के प्रभाव स्वरूप देशी शराब के संेवन का प्रचलन भी बढ़ा है। किन्तु इसका प्रतिशत महिलाओं में काफी कम है। आर्थिक कारणों से महिलाएॅ इन मद्यपान का सेवन नहीं के बराबर करती है।
जनजाती महिलाओं में सामाजिक परिवर्तन -
पूर्व में जनजातिय महिलओं की शिक्षा को महत्व नही दिया जाता था, उनका मत था कि स्त्रिायाॅ सिर्फ घर का कार्य कर सकती है परन्तु अब इस विचारधारा में उल्लेखनीय परितवर्तन हो रहा है। बालिकाओं की शिक्षा को लेकर अब लोग जागरूक हो गए है। बालिकाओं को भी पढ़ने के लिए भेजा जा रहा है जिससे स्त्रियों के निम्न स्तर में परिवर्तन हुआ है। लोगो में शिक्षा के प्रति रूचि बढ़ रही है और शिक्षा पर होने वाले खर्च को फिजूल
खर्च नही समझते है। इससे समाज में महिलाओं की स्थिति में काफी सुदृढ़ता आई है। आदिकाल से ही इनमें बालविवाह का प्रचलन रहा है। वर्तमान में इस जाति में शिक्षा के प्रसार-प्रचार से तथा आधुनिकीकरण के प्रभाव से परिवर्तन आ रहे है। सभ्य समाज के सम्पर्क में आने से इनमें सभ्यता पनप रही है। पहले विधवा स्त्री दूसरा विवाह नहीं कर सकती थी मगर आज विधवा विवाह हो रहे है। महिलाएॅ शिक्षित होने के बाद मतदान करना अपना अधिकार समझते है और अब इनमें राजनैतिक पार्टीयों के क्रियाकलापों के फलस्वरूप राजनैतिक जागरूकता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। पूर्व में पौधों के पत्ते, वृक्षों के छालों को अपने शरीर पर लपेटते थे आदिमानव की तरह जीवन व्यतीत करते थे वर्तमान में ये हर तरह के कपड़े पहनना प्रारंभ कर दिया है। पैदल यात्रा करने वाले वर्तमान में यातायात के साधनों का उपयोग करने लगे है। अंधविश्वास को छोड़कर स्वास्थ्य खराब होने पर फूक-झाड़ न करके डाक्टरी इलाज का महत्व समझने लगे है।
प्रसव पहले घर में ही होती थी जिससे स्त्रियों की दशा अत्यंत दयनीय होती उनकी मृत्युदर भी उच्च होती थी, परन्तु आज ये चिकित्सालय जाकर इलाज करवाने लगे है। शिक्षित होने से परिवार-नियोजन का महत्व भी समझने लगे है। धार्मिक कट्टरता में परिवर्तन आया है पूर्व मे बलिप्रथा का प्रचलन एवं पुरूष वर्ग बाल नहीं कटवाना आदि अपने धर्म व प्रथाओं को छोड़कर धीर-धीरे छत्तीसगढ़ की संस्कृति को अपनाने लगे है। अपनी मूल भाषा को ना बोलकर आज का युवा पीढ़ी हिन्दी/छत्तीसगढ़ी का प्रयोग करने लगे है।
इस प्रकार उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि शिक्षा का प्रसार, ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति आदि के कारण जनजातीय महिलाओं में अनेक सामाजिक सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनैतिक, शैक्षिक, वैचारिक परिवर्तन हुए है जो हमारे सामने उभर कर आए है। जनजातिय महिलाओं के सर्वागींण विकास के लिए उनको शासन के द्वारा समाज की मुख्यधारा से जोड़ना होगा तभी महिला सशक्तिकरण संभव है।
सुझाव-
एक स्त्री ही स्वयं शिक्षित होकर पूरे परिवार को शिक्षित बना सकती है। अतः जनजाति स्त्रियों को अपनी शिक्षा के प्रति जागरूक रहना चाहिए तथा समाज में फैली अनेक बुराईयों, अज्ञानता रूढ़िवादिता, संकीर्णता, को दूर कर शिक्षित बनकर स्वयं आत्मनिर्भर बनना चाहिए।
स्त्रियों को स्वयं ये दिया जाना चाहिए कि वे अपना निर्ण खुद ले सके। उसे पारिवारिक दबाव में नहीं रखना चाहिए।
परिवार निपयोजन को प्राथमिकता देनी चाहिए जिससे स्त्रियों की स्थिति व स्वास्थ्य में सुधार हो सके।
आर्थिक स्थिति की मजबूती के लिए सहकारी समितियों द्वारा परम्परागत व्यवसाय को लाभप्रद बनाया जाना चाहिए।
शासन के द्वारा शिक्षा व व्यवसाय के लिए वित्तीय सहयोग प्रदान किया जाना चाहिए, जिससे इनकी सामाजिक स्थिति में सुधार हो सके।
जनजातीय स्त्रियों को जागरूक होकर आधुनिकता से जुड़ना चाहिए।
जाति पंचायतों द्वारा सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए पहल की जानी चाहिए।
बच्चों को बचपन से ही पढ़ाई के प्रति रूचि पैदा करें और उन्हें सही उम्र में पाठशाला भेजे ताकि नई पीढ़ी समझदार व शिक्षित हो सके।
जादू-टोना पर विश्वास करना इस जाति के लोगो को बंद करना चाहिए ताकि उनकी सामाजिक स्थिति में सुधार हो सके।
निष्कर्ष-
जनजातीय समाज में मद्यपान सेवन परंपरा व संस्कृति में ही है वे स्वयं ही महुआ व अन्य पदार्थो जैसे लांदा महुआ के शराब पर ही बनाते है तथा बेचते भी है यह उनकी आमदनी का एक जरिया है परन्तु वर्तमान समय में नशे की समस्या बढ़ती जा रही है। इनके अलावा जनजातियों में भी गुटखा, तम्बाखू, शराब आदि का सेवन बढ़ता जा रहा है। नशीले पदार्थो का सेवन के कई कारण परिवार सामाजिक व्यवस्था, व्यवसायिकता दोस्ती, स्वयं की जागरूकता आदि। इसक अलावा जनजातीय संस्कृति में मद्यपान की प्रकृति इस व्यसन को और अधिक बढ़ावा दे रही है। तथा इन महिलाओं की कम आमदनी में भी इन व्यसनों के प्रयोग करने के कारण इनकी दरिद्रता व निर्धनता बढ़ती जा रही है।
संदर्भ-सूची
1. दुबे लीला, 19992 - महिलाएॅ और विकास म.प्र.हि.ग्र.अकादमी का प्रकाशन, भारत की सांस्कृतिक विरसत, भोपाल।
2. सच्च्दिानंद सर्वे आॅफ सोशियोलाजी एण्ड सोशल एन्थ्रोपोलाजी आई.सी.एस.आर. 1984।
3. चैधरी डी.एस.-1981 इमर्जिग लीडरशिप इन ट्राइवल इंडिया, मानक पब्लिकेशन्स।
4. दुबे श्यामाचरण-1992 विकास का समाज शास्त्र वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली।
5. तिवारी शिवकुमारः म.प्र.की जनजातियाॅ, म.प्र.हिन्दी एवं ग्रंथ अकादमी, भोपाल 1975।
6. वार्षिक प्रतिवेदन: आदिमजाति एवं अनु.जाति क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण बिलासपुर।
1- Chavdhuri, B.D.: “Tribal Develoment in India” Problems and Propects, D.K. Pub.New Delhi. 1982.
2- Ali, S.F.: Tribal Demography in m.p. Jai bharat pub.Bhopal 1973.
Griffiths, W.G. : the koltribe centeal India, Calcutta, 1946.
Received on 31.01.2013
Revised on 05.02.2013
Accepted on 22.02.2013
© A&V Publication all right reserved
Research J. Humanities and Social Sciences. 4(2): April-June, 2013, 145-147