भारतीय महिलाएँ-अधिकार और कर्तव्य-कल आज और कल
डिगेश्वर नाथ खुटे
सहायक प्राध्यापक, इतिहास अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)
साराँश
विधाता के सृष्टि जगत के विभिन्न जीव जगत में सर्वोत्तम कृति के रूप में मानव जगत है। इस सर्वोत्तम सृष्टि कृति के दो अभूतपूर्व जीव नारी और पुरूष है। ईश्वर ने पुरूष को पौरूष से और नारी को विश्व के चिर स्थायित्व, शास्वत मंगलकारी व स्त्रियोचित मानवीय मूल्यों से परिपूर्ण सौंदर्य युक्त आकर्षक व्यक्तित्व के रूप में निर्मित किया।
विश्व के समग्र नारी समूह मूलतः कोमल, सहनशीलता, वाल्सल्य, स्नेह, ममतामयी व त्याग की प्रतिमूर्ति होने के साथ-साथ कार्यकुशल व्यवहार कुशल व्यक्तित्व का स्वामिनी है। ’’ईश्वर के बाद हम सबसे अधिक ऋणी नारी के है। पहले तो स्वयं इस जीवन के लिये और फिर इस जीवन को योग्य बनाने के लिये।’’
भारत में प्राचीन वैदिक काल में नारी को शक्ति, ज्ञान और संपत्ति का प्रतीक मानकर दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी के रूप में पूजा की जाती थी। नारी को पुरूषों के बराबर पूर्ण अधिकार प्राप्त था। ऋग्वेद के अनुसार - ’’जिस घर में स्त्रियों की पूजा होती है, वहाँ देवताओं का निवास होता है।’’ पत्नी के रूप में नारी की स्थिति बहुत ऊँची थी। इस युग में महिलाओं की गतिशीलता पर कोई रोक नहीं थी, पुत्री को पिता की संपत्ति में उत्तराधिकार प्राप्त था। नारी की दयनीय स्थिति कालांतर में पैदा हुई। अथर्ववेद में पुत्री को दुःख देने वाली माना गया। मनु स्मृति में महिला के अधिकारों पर अनेक तरह के प्रतिबंध दृष्टिगोचर होते हैं। मनु ने पुत्री की अपेक्षा पुत्र को अधिक महत्व दिया, कन्या को उन्होंने दया का पात्र माना। सूत्रकाल में कन्या को वेद अध्ययन और उपनयन संस्कार से वंचित किया गया। मनु ने स्पष्ट किया कि नारी अपने जीवन के किसी भी काल में वास्तविक स्वतंत्रता को उपयोग नहीं कर सकती। ’’बचपन में पिता, युवावस्था में पति और वृद्धावस्था में पुत्र पर आश्रित होना स्त्रियों के लिये स्वाभाविक है।’’
इस तर्क के फलस्वरूप सुरक्षा के नाम पर नारी को अनावश्यक रूप से पराधीन बना दिया गया और कालांतर में नारियों की स्थिति क्रमशः गिरती चली गयी। इसके बावजूद हर काल में कुछ ऐसी नारियाँ भी होती रही, जिन्होंने समाज में नारी के महत्व की उद्घोषणा को जीवित रखा। नारी शिक्षा नारी अधिकार और नारी विकास की बात केवल आज की आवाज नहीं है, बल्कि यह शुरू से ही हमारी संस्कृति में रही है। ऋग्वेद की अनेक रचनाओं की रचना जहां अनेक महिलाओं ने की है, वहीं ऐतरेय तथा कौषितकी ब्राह्ममण में अनेक स्त्रियों के विदुषी होने के प्रमाण मिलते हंै। यहां तक उल्लेख मिलता है कि अनेक वीरांगनाओं ने अपने पतियों के साथ युद्ध क्षेत्र में भाग लिया था। मध्यकाल से स्वतंत्रता प्राप्ति तक नारियों की स्थिति संतोषजनक नहीं रही है।
बाल विवाह पर्दा प्रथा, सती प्रथा, दहेज प्रथा, निरक्षरता, अंधविश्वास, अस्पृश्यता जैसी सामाजिक बुराइयों ने उनकी स्थिति में गिरावट पैदा किये। किंतु स्वतंत्रता के बाद से संविधान में किए गए अनेक प्रावधानों के कारण आज भारतीय महिलाओं की स्थिति में गुणात्मक सुधार हुआ है।
किसी भी देश की संस्कृति उसका इतिहास और भाव-भाषा वहां की महिला के विकास, प्रगति और समृद्धि में परिलक्षित होता है। महिला समाज की रचनात्मक शक्ति है, उसके आगे बढ़ने से देश आगे बढ़ता है, उसके रूकने या धीमा हो जाने से देश थम जाता है। प्रत्येक सफल पुरूष के पीछे एक महिला होती हैं, यह लोक अवधारणा नारी शक्ति की सर्वमान्य एवं सर्वकालीन प्रतीक रही है। 20वीं शताब्दी में भारत में महिलाओं की स्थिति में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ है। आज महिला पुरूष के साथ कंधे से कंधे मिलाकर प्रत्येक क्षेत्र में कार्य कर रही हैं। महिलाएं अब पंचायत की सरपंच से लेकर देश के राष्ट्रपति तक सर्वोच्च पदों पर आसीन हो रहे हैं। वे सभी क्षेत्रों में अपनी कार्यक्षमता का उल्लेखनीय परिचय देकर देश विदेश में ख्याति अर्जित कर रहे हैं। घर परिवार से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक उसकी कीर्ति पताका लहरा रही हैं। अब शायद ही ऐसा क्षेत्र हो जिसकी दीवारों को अभेद्य रहने दिया गया हो।
भारतीय महिलाओं की ये उपलब्धियां जितना सच है, उससे बड़ सच उनका अंधकारमय पक्ष भी है। हमें इस सच को नहीं भूलना चाहिए, कि ये सारी उपलब्धियां शहरी महिलाओं तक ही सीमित हैं। शहरों में भारत की जनसंख्या का मात्र 30ः ही निवास करते हैं, शेष 70ः ग्रामीण महिलाओं की स्थिति अभी भी कमजोर बनी हुई है। वे अशिक्षा बेरोजगारी, अन्याय, शोषण, दमन, अत्याचार उत्पीड़न एवं भेदभाव की शिकार हैं।
पुरूष प्रधान समाज के कारण पुरूष शासक और महिला शोषित बनकर रह गई है। पुत्र की लालसा से हमारे देश में कन्या भु्रण हत्या का प्रतिशत बढ़ता जा रहा हैं। गरीबी के कारण कुपोषण से महिलाएं कमजोर हुए है। लगभग 70ः महिलाएं रक्ताल्पता से पीड़ित है। महिलाओं की साक्षरता दर पुरूषों के मुकाबले बहुत कम है। 2011 के जनगणना में 36ः महिलाएं अशिक्षित पाई गई हैं। ग्रामीण महिलाएं लगभग दिन भर काम करती है, जिससे इसे शारीरिक व मानसिक थकावट कम नींद तथा तनाव आदि परेशानियों से जूझना पड़ता है। देश में आज महिलाएं घर बाहर गांवों तथा शहरों व महानगरों एवं कस्बों में सभी जगह असुरक्षित है। उनके विरूद्ध हिंसा व अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। स्पष्ट है कि जन्म से मृत्यु तक महिलाओं का जीवन संघर्षमय है।
महिलाओं के सामाजिक स्तर को ऊँचा उठाने के लिये उन्हें शिक्षित करना परम आवश्यक है। 09 मार्च 2010 को राज्य सभा में पारित महिला आरक्षण विधेयक को लोकसभा से भी पारित कराया जाय। संविधान में महिलाओं के विरूद्ध अत्याचार एवं दृष्कृत्य कार्य करने वालों पर कड़े दंड का प्रावधान हो। अभी देश में दिल्ली की दामिनी व प्रदेश (छ.ग.) की नहरहपुर (कांकेर) के कन्या आश्रम की घटनाओं ने पूरे मानव समाज को झकझोर कर रख दिया है, उन घटनाओं को अंजाम देने वालों के खिलाफ कठोर दंड दिये जाएं। समानता और न्याय के साथ समावेशी विकास का हमारा चिर प्रतीक्षित स्वप्न तभी सकार होगा। नारी सशक्तीकरण हेतु स्थानीय स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक समाज का पुननिर्माण होना चाहिए तथा ऐसे समाज की स्थापना हो जहां महिलाओं का शोषण न हो। नारी के पांवों में पड़ी पायल रूपी जंजीर हमेशा के लिए टूट जाएं और उसका आंचल आजादी का परचम बनकर लहराए। महिलाओं की श्रेष्ठता, अद्वितीयता एवं आदर्श को समर्पित पंक्तियां है -
’’नारी तुम शक्ति हो, तुम ज्ञान हो,
तुम ही संस्कारों की खान हो।
क्रांति की अग्रदूत, गौरव का तुम सार हो।
नारी तुम चेतना का आह्वान हो।।’’
संदर्भ सूची:
1. योजना सूचना एवं प्रकाशन विभाग, सूचना भवन, नई दिल्ली, जनू 2012।
2. छत्तीसगढ़ विवेक कल्याण स्नातकोत्तर महाविद्यालय, भिलाई, अप्रैल-जून, 2012।
3. मुखर्जी, रविन्द्रनाथ, भारतीय समाज व संस्कृति, विवेक प्रकाशन, दिल्ली, 2006।
4. प्रतियोगिता दर्पण, स्वदेशी बीमा नगर, आगरा (उ.प्र.), जुलाई 2006।
5. रोजगार और नियोजन, छ.ग. संवाद, रायपुर, 5 दिसंबर 2012।
6. नवभारत, रायपुर छ.ग., 08 जनवरी 2013।
Received on 06.02.2013
Revised on 26.02.2013
Accepted on 05.03.2013
© A&V Publication all right reserved
Research J. Humanities and Social Sciences. 4(1): January-March, 2013, 92-93