बस्तर के जनजातियों में स्वास्थ्य व्यवहार: एक मानववैज्ञानिक अध्ययन
रूपेन्द्र कवि1 अशोक प्रधान एवं राजेन्द्र सिंह1
अनुसंधान सहायक, आदिमजाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, जगदलपुर(छ.ग.)
2व्याख्याता, मानव विज्ञान अध्ययन शाला, पं.रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)
सार-संक्षेप:
प्रस्तुत शोध बस्तर के जनजातियों में उपलब्ध परम्परागत चिकित्सा पद्धति एवं आधुनिक स्वास्थ्य सुविधाओं तथा उनके प्रति जनजातियों के स्वास्थ्य व्यवहार, विश्वास एवं प्राथमिकता पर किया गया है । एकरनेट के अनुसार आदिम चिकित्सा एक जादुई चिकित्सा है। यह समाज द्वारा मान्यता प्राप्त सामाजिक औषधीय प्रणाली है, जो लोक चिकित्सकों सिरहा, गुनिया, पंजियार, पुजारी/गायता एवं वड्डे के माध्यम से परम्परागत रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होती रहती है। अध्ययन में बस्तर जिला ;वर्तमान में बस्तर एवं नारायणपुर जिलाद्ध में निवासरत बूझमाड़िया, मुरिया, गोंड, हल्बा, भतरा, धुरवा एवं दण्डामी माड़िया जनजातियाँ शामिल हैं । बस्तर जिला के 14 विकासखंडों में से 09 विकासखंडों के 18 ग्रामों का चयन उद्देश्य मूलक निदर्शन विधि से किया गया है। इन गांवों में निवासरत समस्त 785 जनजाति परिवारों से प्राथमिक तथ्यों का संकलन किया गया है । प्राथमिक तथ्यों के संकलन हेतु अर्धसहभागी अवलोकन, अनुसूची, साक्षात्कार निर्देशिका एवं व्यैयक्तिक अध्ययन प्रविधियों का प्रयोग किया गया है । इस तरह इस अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है कि आज भी जनजातियों का स्वास्थ्य आधुनिक चिकित्सा पद्धति की अपेक्षा पारम्परिक चिकित्सा पद्धति पर अधिक निर्भर है । अतः रोगोपचार में किसी न किसी रूप में उनके धार्मिक विश्वास को ध्यान में रखते हुए उनके लोक चिकित्सकों का उपयोग किया जाना उचित होगा ।
1. प्रस्तावनारू
;पद्ध विषय परिचय: मानववैज्ञानिकों का रूझान सरल समाजों में प्रचलित चिकित्सा पद्धति के प्रति प्राचीन काल से बना हुआ है। सन् 1897 में फ्रांज बोआज ;थ्तंद्र ठवंेद्ध ने वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर नृजातीय चिकित्सा पद्धति एवं इससे संबंधित अन्य पक्षों पर प्रकाश डालने का प्रयास किया। एकरनेट ;।बांतादंबीजद्ध ने 1982 में आधुनिक चिकित्सा पर अनेक लेख प्रकाशित किये । उनके अनुसार आदिम चिकित्सा एक जादुई चिकित्सा है । हसन व प्रसाद ;1959) के अनुसार चिकित्सा मानवविज्ञान वह शाखा है, जिसमें मानव के जैविकीय व सांस्कृतिक पक्षों का अध्ययन चिकित्सकीय इतिहास, चिकित्सकीय परीक्षा, सामाजिक चिकित्सा एवं जन स्वास्थ्य के समस्याओं को समझने की दृष्टि से सम्पन्न किये जाते हैं । वास्तव में यह समाज द्वारा मान्यता प्राप्त सामाजिक औषधीय प्रणाली है, जो परम्परा के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होती रहती है ।
प्रस्तुत अध्ययन बस्तर के जनजातियों में उपलब्ध परम्परागत एवं अपरम्परागत स्वास्थ्य सुविधाओं एवं उनके प्रति जनजातियों के स्वास्थ्य व्यवहार, विश्वास एवं प्राथमिकता पर किया गया है । इसके अंतर्गत उनके मध्य प्राथमिक तथ्यों को प्रत्यक्ष रीति से प्राप्त कर यह जानने की कोशिश की गई है कि बस्तर के जनजातियों में परम्परागत चिकित्सा के प्रति जो व्यवहार बना हुआ था, क्या उसमें परिवर्तन आया है ? क्षेत्र में उपलब्ध लोक चिकित्सक जनजातियों में व्याप्त बीमारियों का निदान करने में कहां तक समर्थ हैं ? जनजातियों के विश्वास एवं परम्परागत चिकित्सा के प्रति उनके प्राथमिकता का कारण क्या है ? एवं उन समस्याओं को भी सामने लाने की भी कोशिश की गई है, जिनके समाधान से जनजातियों को आधुनिक चिकित्सा पद्धति से जोड़ा जा सके ।
सारणी 01रू अध्ययन हेतु चयनित कुल ग्रामों व परिवारों का विवरण
क्र. एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना विकासखंड ग्राम/दूरी
0-10 किमी परिवार 10-20 किमी परिवार
1.
जगदलपुर 1. बकावण्ड
2. तोकापाल
3. दरभा
4. बास्तानार 1 तुंगापाल
1 कोयपाल
1 कोण्डलूर
1 छोटेबोदेनार 69
28
29
33 2 बेलगांव
2 तारागांव
2 पेदावाड़ा
2 डोकेम 62
28
62
26
2.
कोण्डागांव 1. कोण्डागांव
2. फरसगांव
3. बड़े राजपुर 1 चीचपोलंग
1 पैंसरा
1 छिंदली 41
71
96 2 चांगेर
2 कारागांव
2 करमरी 55
44
69
3. नारायणपुर 1. नारायणपुर
2. ओरछा 1 खैराभाट
1 मंडाली 34
19 2 सुपगांव
2 कोरोवाया 12
07
योग 09 09 420 09 365
;पपद्ध क्षेत्र परिचय: छत्तीसगढ़ राज्य के दक्षिण में स्थित बस्तर जिला ;वर्तमान में बस्तर एवं नारायणपुर जिलाद्ध देश के एक प्रमुख जनजातीय क्षेत्र के रूप में जाना जाता है । बस्तर जिला 17046-20034 उत्तरी अक्षांश तथा 80015-82015 पूर्वी देशांश के मध्य स्थित है तथा इसका क्षेत्रफल 8,756 वर्ग किमी. है । बस्तर जिला की कुल जनसंख्या 13,06,673 है ;जनगणना 2001द्ध, जिसमें 6,49,801 पुरुष व 6,56,872 स्त्री जनसंख्या है । बस्तर जिला की कुल जनसंख्या का 66.3 प्रतिशत जनजातीय जनसंख्या है । यहाँ लिंग अनुपात 1011 है ।
;पपपद्ध जनजातीय परिचय: प्रस्तुत अध्ययन में बस्तर जिला ;वर्तमान में बस्तर एवं नारायणपुर जिलाद्ध में निवासरत अबूझमाड़िया, मुरिया, गोंड, हल्बा, भतरा, धुरवा एवं दण्डामी माड़िया जनजातियाँ शामिल हैं । अबूझमाड़िया आदिम जनजाति बस्तर जिला के ओरछा ;अबूझमाडद्ध़ विकासखंड में, मुरिया जनजाति नारायणपुर, कोंडागांव, माकड़ी, जगदलपुर, तोकापाल विकासखंडों में, गोंड जनजाति नारायणपुर, कोंडागांव, फरसगांव, ओरछा, बड़ेराजपुर, दरभा, लोहंडीगुड़ा विकासखंडों में, हल्बा जनजाति नारायणपुर, फरसगांव, कोण्डागांव, जगदलपुर तथा लोहंडीगुड़ा विकासखंडों में, भतरा जनजाति जगदलपुर, बकावण्ड व बस्तर विकासखंडों में, धुरवा जनजाति दरभा, तोकापाल, जगदलपुर व बकावण्ड विकासखंडों में तथा दण्डामी माड़िया जनजाति बास्तानार, दरभा व तोकापाल विकासखंडों में निवास करती है।
2. शोध का उद्देश्यरू
प्रस्तुत शोध अध्ययन के निम्नलिखित उद्देश्य हैं:-
1. अध्ययन क्षेत्र में उपलब्ध संस्थागत एवं पारम्परिक स्वास्थ्य सुविधाओं की जानकारी प्राप्त करना ।
2. जनजातियों को इन सुविधाओं से प्राप्त लाभों का अध्ययन करना ।
3. स्वास्थ्य संस्थाओं के प्रति जनजातियों के विश्वास का अध्ययन करना ।
4. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में स्वास्थ्य के संबंध में जनजातियों में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन करना ।
3. अनुसंधान प्रविधियाँरू
प्रस्तुत अध्ययन बस्तर जिला ;वर्तमान में बस्तर एवं नारायणपुर जिलाद्ध के तीनों एकीकृत आदिवासी विकास परियोजनाओं में किया गया है । परियोजना के अंतर्गत विकासखंडों का चयन उद्देश्य मूलक निदर्शन विधि से किया गया है । प्रत्येक परियोजना के अंतर्गत 50 प्रतिशत से अधिक विकासखण्डों को शामिल किया गया है । इस तरह कुल 14 विकासखंडों में से 09 विकासखंड अध्ययन में शामिल हंै । प्रत्येक विकासखंड के अंतर्गत 2 ग्रामों का चयन उद्देश्य मूलक निदर्शन विधि से किया गया है, जिसमें एक गांव विकासखंड मुख्यालय के समीप एवं एक गांव विकासखंड मुख्यालय से दूर स्थित है । इस तरह कुल 18 ग्राम अध्ययन में सम्मिलित हैं । प्रत्येक गांव में निवासरत समस्त जनजाति परिवारों से अर्थात् जगगणना विधि से प्राथमिक तथ्यों का संकलन किया गया है ।
प्राथमिक तथ्यों के संकलन हेतु अधर््ासहभागी अवलोकन, अनुसूची, साक्षात्कार निर्देशिका एवं व्यैयक्तिक अध्ययन प्रविधियों का प्रयोग किया गया है । सारणी क्र. 01 में अध्ययन हेतु चयनित कुल ग्रामों व परिवारों को दर्शाया गया है ।
4. विश्लेषणरू
;पद्ध क्षेत्र में उपलब्ध संस्थागत स्वास्थ्य सुविधाएँ: सर्वेक्षित जनजातीय ग्रामों के सभी 09 विकासखण्ड मुख्यालयों में अस्पताल की सुविधा उपलब्ध है । इसके साथ-ही सर्वेक्षित कुल 18 ग्रामों में 2 छोटे स्वास्थ्य केन्द्र तथा 14 आंगनबाड़ी केन्द्र उपलब्ध हैं । इस तरह शासकीय आधार पर स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता क्षेत्र में देखी जा सकती है ।
सारणी 02रू सर्वेक्षित जनजातीय ग्रामों में स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता
क्र. संस्था उपलब्ध अनुपलब्ध
1. अस्पताल 2 16
2. आंगनबाड़ी 14 04
;पपद्ध स्वास्थ्य सेवा केन्द्र में सर्वेक्षित ग्रामों की दूरी: सर्वेक्षित 18 ग्रामों में से 12 ग्राम स्वास्थ्य सेवा केन्द्र से 5-10 किलोमीटर दूरी पर स्थित हैं । इससे स्पष्ट है कि सामान्यतः लोगों को बहुत दूर तक स्वास्थ्य सुविधा हेतु नहीं जाना पड़ता परंतु जनजातीय लोगों से चर्चा के दौरान एवं चिकित्सकों को देखने के बाद यह दिखाई पड़ता है कि इन केन्द्रों में सुविधाओं का पूर्णतः अभाव है, चिकित्सकों की कमी है एवं स्वास्थ्य कर्मियों का जनजातियों के प्रति उचित व्यवहार का अभाव है।
सारणी 03रू स्वास्थ्य सेवा केन्द्र से सर्वेक्षित ग्रामों की दूरी
क्र. दूरी ;किमी.द्ध ग्राम
संख्या प्रतिशत
1. 0 02 11.11
2. 5 से कम 06 33.33
3. 5-10 06 33.33
4. 10-15 02 11.11
5. 15-20 01 5.56
6. 20 से अधिक 01 5.56
योग 18 100.00
;पपपद्ध जनजातियों द्वारा आधुनिक चिकित्सा पद्धति की अस्वीकार्यता का कारण: सर्वेक्षित कुल 785 परिवारों के मुखिया से तथ्यों के संकलन से यह ज्ञात हुआ कि वे किन कारणों से आधुनिक चिकित्सा पद्धति को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं । वे कारण सारणी 04 में दिये गये हैं। 19 प्रतिशत जनजातियों का आधुनिक चिकित्सा पद्धति पर विश्वास नहीं है, जबकि 15.06 प्रतिशत चिकित्सालयों के कर्मचारियों के व्यवहार से खिन्न हैं । 14.91 प्रतिशत अस्पताल के भय से, 13.74 प्रतिशत खर्चीली चिकित्सा से, 13.30 प्रतिशत आधुनिक चिकित्सा के असफलता को सोचकर, 12.14 प्रतिशत चिकित्सा केन्द्र की दूरी के कारण एवं 11.84 प्रतिशत अन्य कारणों से आधुनिक चिकित्सा पद्धति से उपचार नहीं करा पा रहे हैं । इस प्रकार आध्ुानिक चिकित्सा पद्धति से उचित लाभ नहीं लेने वालों की संख्या 87.13 प्रतिशत है । मात्र 12.87 प्रतिशत लोग ही आधुनिक चिकित्सा का लाभ ले पा रहे हैं ।
सारणी 04ः आध्ुनिक चिकित्सा पद्धति की अस्वीकार्यता का कारण
क्र. कठिनाई परिवार
संख्या प्रतिशत
1. अविश्वास 130 19.01
2. भय 102 14.91
3. असफलता 91 13.30
4. कर्मचारियों का व्यवहार 103 15.06
5. चिकित्सा केन्द्र की दूरी 83 12.14
6. खर्चीला 94 13.74
7. अन्य कारण 81 11.84
योग 684 100.00
87.13
आध्ुानिक उपचार 101 12.87
कुल योग 785 100.00
;पअद्ध क्षेत्र में उपलब्ध लोक चिकित्सकों का विवरण: सर्वेक्षित कुल 18 ग्रामों में सारणी 05 के अनुसार कुल 145 लोक चिकित्सक पाये गये हैं, जिनमें 63 सिरहा, 44 गुनिया, 16 पंजियार, 18 पुजारी/गायता एवं 4 वड्डे हैं । ये लोक चिकित्सक रोगी व्यक्ति का स्थानीय स्तर पर उपचार करते हैं । जो अपने-अपने आराध्य देवी-देवताओं को संतुष्ट करके झाड़-फंूक एवं जड़ी-बूटी के द्वारा रोगियों का ईलाज करते हैं ।
सारणी 05ः लोक चिकित्सकों का विवरण
क्र. लोक चिकित्सक परिवार
संख्या प्रतिशत
1. सिरहा 63 43.45
2. गुनिया 44 30.35
3. पंजियार 16 11.03
4. पुजारी/गायता 18 12.41
5. वड्डे 04 02.76
योग 145 100.00
;अद्ध सर्वेक्षित ग्रामों में अस्वस्थता का विवरण: अध्ययन वर्ष के दौरान सर्वेक्षित ग्रामों में कुल 4236 स्त्री-पुरुषों के मध्य अस्वस्थता की जानकारी प्राप्त की गई। इनमें कुल 2119 बार अस्वस्थता को दर्ज किया गया । सबसे ज्यादा सर्दी-खांसी से पीड़ितों की संख्या 34.03 प्रतिशत रही, इसके बाद मलेरिया 17.04 प्रतिशत, उल्टी-दस्त 13.42 प्रतिशत, त्वचा रोग 11.28 प्रतिशत, बुखार 9.18 प्रतिशत, नेत्र रोग 7.55 प्रतिशत, एवं अन्य रोग 7.50 प्रतिशत पायी गयी ।
;अपद्ध जनजातियों का स्वास्थ्य उपचार संबंधी व्यवहार: कुल 785 परिवारों में रोगियों के उपचार में किस विधि को प्राथमिकता दिया जा रहा है इस पर सर्वेक्षण किया गया। इसमें यह पाया गया कि 42.42 प्रतिशत परिवार झाड़-फंूक को प्रथम प्राथमिकता देते हैं जबकि 34.14 प्रतिशत परिवार जड़ी-बूटी से उपचार को प्राथमिकता देते हैं । 12.87 प्रतिशत जनजातीय परिवार आधुानिक चिकित्सा पद्धति के द्वारा चिकित्सकीय लाभ प्राप्त कर रहे हैं । 10.57 प्रतिशत परिवार आयुर्वेदिक उपचार पद्धति से लाभ ले रहे हैं। जिसकी जानकारी सारणी 07 में दी गई है ।
सारणी क्रमांक 06ः सर्वेक्षित ग्रामों में प्रमुख रोग व रोगियों की संख्या
क्र. रोग रोगी
पुरूष स्त्री योग
संख्या प्रतिषत संख्या प्रतिषत संख्या प्रतिषत
1. सर्दी-खांसी 286 34.09 363 33.99 649 34.03
2. मलेरिया 143 17.04 182 17.05 325 17.04
3. बुखार 77 9.18 98 9.178 175 9.18
4. उल्टी-दस्त 113 13.47 143 13.39 256 13.42
5. त्वचा रोग 95 11.32 120 11.23 215 11.28
6. नेत्र रोग 63 7.51 81 7.58 144 7.55
7. अन्य 62 7.39 81 7.58 143 7.50
कुल रोगी 839
(39.59) 100 1068
(50.45) 100 1907
(45.02) 100
निरोगी 1280
(60.41) 1049
(49.55) 2329
(54.98)
महायोग 2119
(100) 2117
(100) 4236
(100)
सारणी क्रमांक 07ः स्वास्थ्य उपचार संबंधी व्यवहार का विवरण
क्र. उपचार परिवार
संख्या प्रतिशत
1. झाड़-फूंक 333 42.42
2. जड़ी-बूटी 268 34.14
3. आयुर्वेदिक 83 10.57
4. आधुनिक 101 12.87
योग 785 100.00
;अपपद्ध झाड़-फंूक द्वारा उपचार को प्राथमिकता का कारण: सर्वेक्षित कुल 785 परिवार में से 333 परिवार ;42.42 प्रतिशतद्ध स्वास्थ्य लाभ के लिए झाड़-फंूक को प्राथमिकता देते हैं। इस प्राथमिकता के कारणों को सारणी 08 में दर्शाया गया हैे। झाड़-फूंक के द्वारा उपचार करने का कारण बड़ों को देखकर झाड़-फूंक कराया जाना 29.43 प्रतिशत परिवारों ने, झाड़-फूंक पर विश्वास के कारण 21.32 प्रतिशत परिवारों ने, आधुनिक चिकित्सा के प्रति अज्ञानता अथवा सुविधा के अभाव के कारण 21.02 प्रतिशत परिवारों ने, स्थानीय उपलब्ध्ता के कारण 18.62 प्रतिशत परिवारों ने एवं अशिक्षा के कारण 9.61 प्रतिशत परिवारों ने झाड़-फूंक को उपचार में प्राथमिकता देने का कारण बतलाया।
सारणी क्रमांक 08रू झाड़-फूंक द्वारा उपचार को प्राथमिकता के कारणों का विवरण
क्र. प्राथमिकता का कारण परिवार
संख्या प्रतिशत
1. विश्वास 71 21.32
2. स्थानीय उपलब्धता के कारण 62 18.62
3. बड़ों को देखकर 98 29.43
4. अशिक्षा 32 9.61
5. आधुनिक चिकित्सा के प्रति अज्ञानता या सुविधा का अभाव 70 21.02
योग 333 100.00
;अपपपद्ध जड़ी-बूटी द्वारा उपचार को प्राथमिकता का कारण: जड़ी-बूटी के द्वारा रोग उपचार को प्राथमिकता के साथ स्वीकार करने वाले परिवारों की संख्या 268 परिवार हैं, जिनमें से 26.86 प्रतिशत परिवारों का जड़ी-बूटी पर विश्वास है, इसलिए वे जड़ी-बूटी को रोग उपचार में प्राथमिकता देते हैं, जबकि 25.75 प्रतिशत परिवार स्थानीय उपलब्धता के कारण अपना उपचार इस माध्यम से करवाते हैं । इनमें 21.64 प्रतिशत परिवार आधुनिक चिकित्सा पद्धति के प्रति अज्ञानता के कारण, 15.03 प्रतिशत अशिक्षा के कारण, 10.45 प्रतिशत अपने से बड़ों को चिकित्सा करवाते देखकर स्वयं भी इस पद्धति से उपचार को प्राथमिकता देते हैं । इसे सारणी 09 में दर्शाया गया है:-
सारणी क्रमांक 09ः जड़ी-बूटी द्वारा उपचार को प्राथमिकता के कारणों का विवरण
क्र. प्राथमिकता का कारण परिवार
संख्या प्रतिशत
1. विश्वास 72 26.86
2. स्थानीय उपलब्धता के कारण 69 25.75
3. बड़ों को देखकर 28 10.45
4. अशिक्षा 41 15.30
5. आधुनिक चिकित्सा के प्रति अज्ञानता या सुविधा का अभाव 58 21.64
योग 268 100.00
;पगद्ध आधुनिक चिकित्सा द्वारा उपचार को प्राथमिकता का कारण: कुल सर्वेक्षित 785 परिवारों में से 12.87 प्रतिशत परिवार अभी आधुनिक चिकित्सा पद्धति को प्राथमिकता दे रहे हैं । इनमें से 37.63 प्रतिशत परिवार स्थानीय स्तर पर आधुनिक उपचार की उपलब्ध्ता के कारण, 24.75 प्रतिशत इस चिकित्सा पद्धति में विश्वास के कारण, 21.78 प्रतिशत दूसरों को देखकर एवं 15.84 प्रतिशत अन्य कारणों से स्वास्थ्य लाभ के लिए आधुनिक चिकित्सा को प्राथमिकता दे रहे हैं । इसे सारणी 10 में दिखाया गया है ।
सारणी क्रमांक 10ः आधुुनिक चिकित्सा को प्राथमिकता के कारणों का विवरण
क्र. प्राथमिकता का कारण परिवार
संख्या प्रतिशत
1. विश्वास 25 24.75
2. स्थानीय उपलब्धता के कारण 38 37.63
3. दूसरों को देखकर 22 21.78
4. अन्य 16 15.84
योग 101 100.00
;गद्ध आयुर्वेदिक चिकित्सा द्वारा उपचार को प्राथमिकता का कारण: कुल सर्वेक्षित 785 परिवारों में से 10.57 प्रतिशत परिवारों ने रोग उपचार हेतु आयुर्वेदिक पद्धति को प्राथमिकता देना स्वीकार किया। उनके अनुसार इसका कारण इस पद्धति पर 31.32 प्रतिशत परिवारों ने विश्वास बतलाया, जबकि 27.07 प्रतिशत परिवारों ने स्थानीय स्तर पर आयुर्वेदिक पद्धति की उपलब्ध्ता को, 24.10 प्रतिशत परिवारों ने दूसरों को देखकर एवं 16.87 प्रतिशत परिवारों ने अन्य कारणों से आयुर्वेदिक पद्धति से उपचार को प्राथमिकता का कारण बताया। इसे सारणी 11 में दर्शाया गया है:-
सारणी क्रमांक 11ःआयुर्वेदिक चिकित्सा को प्राथमिकता के कारणों का विवरण
क्र. प्राथमिकता का कारण परिवार
संख्या प्रतिशत
1. विश्वास 26 31.32
2. स्थानीय उपलब्धता के कारण 23 27.71
3. दूसरों को देखकर 20 24.10
4. अन्य 14 16.87
योग 83 100.00
5. निष्कर्षः
वर्तमान अध्ययन हेतु बस्तर जिला के सर्वेक्षित कुल 9 विकासखण्डों के अंतर्गत 18 ग्रामों के सम्पूर्ण 785 परिवारों से तथ्यों का संकलन किया गया है । सर्वेक्षित जनजाति क्षेत्र के समस्त विकासखण्ड मुख्यालयों एवं 2 सर्वेक्षित ग्रामों में अस्पताल की सुविधा उपलब्ध है । इस कारण से ऐसा प्रतीत होता है कि जनजाति आधुनिक चिकित्सा का उचित लाभ प्राप्त करते होंगे, परंतु अध्ययन से स्पष्ट होता है कि अस्पतालों में इन आदिवासियों के प्रति कर्मचारियों का उचित व्यवहार न होने के कारण, खर्चिली चिकित्सा पद्धति होने के कारण, विशेषकर इस चिकित्सा पद्धति में विश्वास न होने के कारण 87.13 प्रतिशत परिवार आधुनिक चिकित्सा का लाभ प्राप्त नहीं कर रहे हैं । मात्र 12.87 प्रतिशत परिवारों को इस आधुनिक चिकित्सा पद्धति का लाभ प्राप्त करते पाया गया । जबकि स्वास्थ्य सेवा केन्द्र से ग्रामों की दूरी 5 से 15 किलोमीटर के अंतर्गत ही पायी गयी है, जो सामान्यतः पहँुच के अंदर सुविधा प्राप्त है ।
87.13 प्रतिशत परिवार, जो कि पारंपरिक लोक चिकित्सकीय सेवाओं पर विश्वास कर रहे हैं, उनमें से झाड़-फूंक पर अधिकतम 42.42 प्रतिशत परिवार, जड़ी-बूटी पर 34.14 परिवार, जबकि 10.57 प्रतिशत परिवार, आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से उपचार को प्राथमिकता देते हैं । इनमें से सभी चिकित्सा पद्धतियों में उस चिकित्सा पद्धति पर विश्वास को प्राथमिकता का कारण बताया गया है, सामान्य रूप से सर्दी-खांसी, सर्वेक्षित ग्रामों में अस्वस्थता के रूप में अधिक पायी गयी, जिसका प्रतिशत 34.03 है । परंतु 17.04 प्रतिशत लोग मलेरिया से पीड़ित पाये गये । इस तरह मलेरिया भी इस क्षेत्र में एक प्रमुख रोग है । जनजातियों में 20.38 प्रतिशत लोगों ने रोग के उत्पत्ति का कारण जादू-टोना को बताया, जबकि 17.03 प्रतिशत लोगों ने दैवीय प्रकोप को बीमारी का कारण माना है ।
इस तरह इस अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है कि आज भी जनजातियों का स्वास्थ्य आधुनिक चिकित्सा पद्धति की अपेक्षा पारम्परिक चिकित्सा पद्धति पर अधिक निर्भर है । रोगोपचार में किसी न किसी रूप में उनके धार्मिक विश्वास को ध्यान में रखते हुए उनके लोक चिकित्सकों - सिरहा, गुनिया आदि का उपयोग किया जाना उचित होगा ।
वर्तमान में शासन द्वारा प्रत्येक विकासखण्ड में एक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र की स्थापना की गई है । नारायणपुर में रामकृष्ण मिशन द्वारा संचालित अस्पताल कार्य कर रहा है । इसके साथ ही विश्वास, केयर इंडिया, विकास मित्र आदि अनेक स्वयंसेवी तथा गैर-शासकीय संस्थायें स्वास्थ्य सुधार के क्षेत्र में कार्य कर रही है, जिसके कारण आधुनिक चिकित्सा के प्रति धीरे-धीरे जागरूकता एवं विश्वास बढ़ रहा है । इसका एक कारण जनजातीय क्षेत्रों में कमोबेश शिक्षा का प्रचार-प्रसार भी है ।
6. समस्याएँ एवं सुझावः
समस्याएँ: सर्वेक्षित क्षेत्र के जनजातियों में स्वास्थ्य संबंधी निम्नलिखित समस्याएँ पायी गई:-
1. सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र के कर्मचारियों का व्यवहार जनजातियों के प्रति सही नहीं है, जिसके कारण जनजाति-लोग स्वास्थ्य केन्द्र में जाने से परहेज करते हैं।
2. कई बार स्वास्थ्य केन्द्र जाने पर भी उनका उचित ईलाज इन केन्द्रों में नहीं हो पा रहा है। इसका कारण स्वास्थ्य केन्द्रों में दवाईयों की कमी है।
3. जनजातियों में पारम्परिक रूप से स्थानीय स्तर पर किसी रोगग्रस्त व्यक्ति का उपचार कराना पसंद करते हैं, इसलिए वे 5-10 किलोमीटर दूर स्थित स्वास्थ्य केन्द्रों में नहीं जाना चाहते ।
4. जनजातियों के बीच अशिक्षा एवं आधुनिक चिकित्सा के प्रति अज्ञानता के कारण भी वे आधुनिक चिकित्सा से नहीं जुड़ पा रहे है।
5. आधुनिक चिकित्सा पद्धति इतनी मंहगी है कि एक सामान्य आदिवासी के लिए बीमारी के ईलाज का खर्च करना संभव नहीं है।
6. धार्मिक एवं पारम्परिक विश्वास के कारण आदिवासी परम्परागत चिकित्सा पद्धति को प्राथमिकता देकर उपचार कराते हैं।
सुझाव: सर्वेक्षित क्षेत्रके जनजातियों में स्वास्थ्य संबंध्ी उपर्युक्त समस्याओं के लिए निम्नलिखित सुझाव हैं:-
1. अध्ययन से प्राप्त निष्कर्ष से स्पष्ट है कि अशिक्षित एवं आधुनिकता से दूर इन जनजातियों के प्रति स्वास्थ्य कर्मचारियों एवं चिकित्सकों का व्यवहार सकारात्मक हो, जिससे वे बिना झिझक अपनी समस्या उनके सामने रख सकें ।
2. स्वास्थ्य केन्द्रों में चिकित्सकों की कमी एवं दवाई की कमी के कारण जनजातियों का ईलाज उचित ढंग से नहीं हो पा रहा है । इसलिए स्थिति को ध्यान में रखते हुए दूरस्थ जनजातीय क्षेत्रमें सम्पूर्ण चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध कराना आवश्यक है ।
3. दूरस्थ स्वास्थ्य केन्द्रों में बीमार व्यक्ति को ले जाना कठिन होता है, इसलिए चलित चिकित्सा की उपलब्धता आवश्यक है ।
4. परम्परागत रूप से जनजाति लोक चिकित्सा पर विश्वास करते हैं, इसलिए लोक चिकित्सा के उन पक्षों का उन्नयन करना चाहिए, जिसका लाभ सदियों से जड़ी-बूटियों के द्वारा हमें प्राप्त होता आ रहा है ।
5. लोक चिकित्सकों पर आदिवासियों के विश्वास को ध्यान में रखते हुए जनजातियों को आधुनिक चिकित्सा पद्धति तक पहुंचाने के लिए माध्यम के रूप में स्थानीय लोक चिकित्सकों को जोड़ा जाना आवश्यक है ।
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Received on 10.05.2011
Accepted on 02.06.2011
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Research J. Humanities and Social Sciences. 2(2): April-June, 2011, 68-72